What is Internet in HIndi: दोस्तो आज के दौर मे तो सभी इंटरनेट से परिचित होंगे। आपके मन मे भी यह जरूर आता होगा कि इंटरनेट काम कैसे करता है। हालांकि आज के दौर मे लगभग हर एक वयक्ति इंटरनेट से जुड़कर अपना काम करता है
चाहे वह फाइल शेयरिंग, ब्राउजिंग, सर्फिंग, आनलाइन वीडियो देखना। इन सभी चीजो को करने के लिए इंटरनेट जरूरी होता है।
तो चलिए शुरू करते है… इंटरनेट कई कम्प्यूटरो का समूह है जो आपस मे जुड़े होते है। यह राष्ट्रीय ले लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक हो सकते हैं। आपस मे जुड़े होने के कारण इनका नेटवर्क बन जाता है, इन्हे ही हम इंटरनेट कहते हैं।
एक दूसरे से संवाद करने के लिए हर कम्प्यूटर्स को नाम दिया जाता है यह नाम यूनिक IP होती है। इन्ही IP के जरिये एक कम्प्यूटर का डाटा दूसरे कम्प्यूर को भेजा जाता है।
इसका फुल फाॅम Internet Protocol (इंटरनेट प्रोटोकाल) है।
पिछले आर्टिकल मे हमने कम्प्यूटर क्या है इसके बारे मे विस्तार से बताया था अगर आपने उसे नही देखा तो इसे पढ़ ले।
इंटरनेट क्या है (What is Internet in hindi)
इंटरनेट को वर्ल्ड वाइड वेब के नाम से भी जानते है क्योकि पूरी दूनिया के कम्प्यूटर्स एक दूसरे से सर्वर के माध्यम से जुड़े होते हैं। इसमे अनगिनत कम्प्यूटर्स एक दूसरे से जुड़कर एक जाल बना लेते हैं। यह राउटर, माॅडम और सर्वर के जरिये पूरे वर्ल्ड के कम्प्यूटरों को आपस मे जोड़ता है।
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इंटरनेट को कैसे बनाया गया है –
जो इंटरनेट हम इस्तेमाल करते है वब हम तक सीधे नही पहुचता बल्कि कई चरणो मे होकर आता है। कहने का अर्थ है पहले इसके लिए समुद्र मे आप्टिकल फाइबर केबल बिछाई जाती है जो समुद्र के जरिए हर देश से होकर गुजरता है और इंटरकनेक्टेड होता है।
जैसे अगर भारत की बात करे तो इसके लैंडिंग प्वाइंट मुंबई, कोचिन, चेन्नई, तूतीकोरिन, त्रिनेन्द्रम मे है। लैंडिंग प्वाइंट वह स्थान होता है जहां अतर्राष्ट्रीय आप्टिकल केबल जमीन से जुुड़ता है। 99% तक इंटरनेट ट्रैफिक इन्ही आप्टिकल फाइबर्स के जरिये जाता है।
अब यहां से केबल को देश के अंदर लाने का काम टियर 2 इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां करती है जो इन प्वाइंट्स से देश के विभिन्न हिस्सों मे ले जाते है। जैसे रिलायंस जियो, बीएस.एन.एल, एयरटेल, वोडाफोन आदि।
एैसे ही टियर 3 कंपनिया इनसे लेकर किसी खास हिस्से मे आप्टिकल केबल बिछाती है तो अब आप जान गए होंगे कि इनका कितना बड़ा रोल होता है। इंटरनेट को इतना व्यापक करने मे।
इंटरनेट कैसे काम करता है-
इंटरनेट कैसे काम करता है इसे समझने से पहले कुछ बाते जानना होगा। सभी वेबसाइट कही न कही होस्टेड होती है जहां इसकी फाइल्स रखी होती है।
जब कोई उस साइट को ब्राउजर के एड्रेस बार मे सर्च करता है तो इसका रिक्वेस्ट आपके Internet Service Provider (ISP) तक जाlता है।
ISP के पास DNS record रहता है जहां डोमेन नाम और उसके IP Address की जानकारी होती है। यहां से रिक्वेस्ट उस सर्वर तक चला जाता है।
सभी वेबसाइट का IP Address न्यूमरिक (digit मे) होता है जिसे याद रखना मुश्किल काम होता है। अगर हम चाहे तो ब्राउजर के एड्रेस बार मे डायरेक्ट आई पी एड्रेस सर्च कर सकते है।
लेकिन हर एक साइट के लिए यह करना आसान नही है। इसे ही आसान करने के लिए DNS सर्वर बनाया गया।
जब कोई व्यक्ति इंटरनेट पर कुछ सर्च करता है तो सर्वर पर रखा डाटा इन्ही आप्टिकल फाइबर से होता हुआ हम तक आता है।
जैसे यदि हम किसी वेबसाइट को सर्च करते है तो यह उस सर्वर तक रिक्वेस्ट जाता है जहा वह साइट होस्टेड होती है और फिर वहां रखी फाइल हमारे सिस्टम मे आ जाती है।
यदि हम किसी ऐसे साइट को सर्च करे जो दूसरे देश मे होस्टेड है तो यह समुद्र के जरिये आप्टिकल फाइबर से होते हुए उस देश के सर्वर/डाटा सेंटर तक जाएगा और वहां से आने मे थोड़ा समय लगेगा।
वेसे तो इसे आने मे कुछ मिली सेकेंड लगते हैं। अगर यह दूरी ज्यादा होगी तो समय और ज्यादा लगेगा। यही कारण है कि कुछ कंपनियां अपने डाटा सेंटर को कई देशों मे स्थापित करती हैं
ताकि डाटा को ज्यादा ट्रेवेल न करना पड़े और पास वाले डाटा सेंटर से जल्द से जल्द यूजर की क्वेरी का उत्तर मिला जाए।
जैसा कि हम जानते है हर एक साइट/डोमेन को एक IP असाइन किया जाता है। इसी IP की मदद से कंप्यूटर एक दूसरे से कम्यूनिकेट करते है और डाटा कहां और किस पते पर भेजना है इसका भी निर्धारण होता है।
इसके अलावा TCP डाटा को छोटे-छोटे पैकेट्स के रूप मे भेजता है और उसे नियंत्रित करता है। TCP बाद मे इसे जोड़ देता है। इससे मैसेज का स्वरूप बिगड़ता नही और जैसा मैसेज होता है, ठीक वही यूजर को मिल जाता है।
इंटरनेट की शुरूआत कैसे और किसने की-
इंटरनेट क्या है (what is internet in hindi) यह जानने के बाद हमारे दिमाग मे यह बाद जरूर आता होगा कि आखिर किस व्यक्ति ने इस अजूबे का आविष्कार किया।
तो दोस्तो इंटरनेट के आविष्कार का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नही दिया जा सकता। इसके शुरूआत और विकास मे कई वैज्ञानिको की भूमिका रही। जिन्होने धीरे-धीरे करके इसे बनाया और आज का इंटरनेट बना।
जैसा कि आप सभी जानते है कि किसी भी आविष्कार के पीछे पहले किए गए आविष्कार की मुख्य भूमिका होती है। वैसे ही इंटरनेट से पहले हुए कुछ आविष्कार इसके लिए मददगार रहे।
1836 मे टेलीग्राफ का आविष्कार किया गया जिसमे MOROSE Code टेक्निक का इस्तेमाल हुआ था जो डाॅट और डैशेस के जरिए कनेक्ट किये जाते थे। इसी तरह कम्प्यूटर मे 0, 1 का सिस्टम लाया गया था।
1854 मे ट्रांसएटलैंटिक केबल की शुरुआत की गयी जिसे 1866 मे पूरा किया गया। इसमे अटलांटिक क्षेत्र मे कम्यूनिकेशन के लिए केबल से एक दूसरे को जोड़ा गया। इसी तरीके को आज पूरी दूनिया मे अपनाया गया जो कम्यूनिकेशन का आधारशिला बना।
1957 मे Russia ने सबसे पहले सेटेलाइट स्पूतनिक को अंतरिक्ष मे भेजा। इसे देखकर USA ने भी टेक्नोलाॅजी मे आगे बढ़ने को सोचा
इंटरनेट की शुरुआत एक तरह से 1950-60 के दशक मे हुई जब रसिया और यूएसए के बीच कोल्ड वार चल रहा था। उस समय दोनो देशों मे टेक्नोलाॅजी को लेकर होड़ मची थी। टेक्नोलाॅजी और स्पेस मे आगे बढ़ने और सूचना को एक जगह से दूसरे जगह भेजने के लिए एक ऐसा नेटवर्क चाहिए था जिसके जरिए वह अमेरिका के सारे कम्प्यूटर को एक साथ जोड़ सके।
1960 मे RAND Corporation मे Paul Baran ने ऐसाी टेक्नोलाॅजी बनायी जो न्यूक्लियर वाॅर के बाद भी नेटवर्क को बर्बाद न कर सके। इसी टेक्निक को 1965 मे UK के NPL मे Donald Davies ने आविष्कार किया। इन दोनो के आविष्कार का नाम था Packet Switching.
1962 मे DARPA ने कम्प्यूटर के प्रसिद्ध वैज्ञानिक J.C.R. Liclider को IPTO के लिए हायर किया जो DARPA का ही एक हिस्सा था। Liclider की ही सोच थी कि सारे कम्प्यूटरो को एक साथ जोड़ा जा सकता है। इसी सोच के साथ तीन नेटवर्क का इस्तेमाल करके Berkely, Santa Monica, MIT को कनेक्ट किया। इन टर्मिनल्स के लिए अलग-अलग कमांड थे।
इसमे यह परेशानी थी कि एक समय मे किसी एक टर्मिनल पर ही बात हो सकती थी। उदाहरण के लिए एक साथ Santa Monica, California और MIT (मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाॅजी) के साथ बात नही किया जा सकता था।
दूसरे टर्मिनल से बात करने के लिए पहले टर्मिनल से उठकर दूसरे पर जाना पड़ता था। उस समय उन्होने सोचा ऐसा टर्मिनल होना चाहिए जो हर जगह कनेक्ट हो सके। इसी विचार ने ARPANET को जन्म दिया।
इस संस्था के द्वारा उन्होने एक नेटवर्क बनाया जिसका नाम Galactic Network (गैलेक्टिक नेटवर्क) रखा।
इसका उद्देश्य था अमेरिका डिफेंस के एक कम्प्यूटर को दूसरे से जोड़ना था ताकि उनके सीक्रेट मैसेज को जल्द से जल्द एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुचाया जा सके।
1969 मे DARPA ने लांस एंजिलिस मे कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक कम्प्यूटर और उससे 350 Km. दूर Standford Research Institute के कम्प्यूटर के बीज दूनिया का पहला इलेक्ट्राॅनिक मैसेज LO भेजा।
इसके बाद के लैटर को भेजने से पहले ही Standford Research Institute का कम्प्यूटर क्रैश हो गया। वैसे इनके बीच LOGIN शब्द को भेजा जाना था। इसके बाद इसमे हुई गड़बड़ी को सुधार किया और लगभग 1 घंटे के बाद यह मैसेज भेजने मे सफल हो गये।
1974 मे DARPA के दो वैज्ञानिक Vint Cerf और Bob Kahn ने दो कम्प्यूटरो को आपस मे जोड़ने के लिए TCP (Transmission Control Protocol) डिजाएन किया और Integratic Network का नाम बदलकर Internet रख दिया। इसलिए इन्हे Father of Internet कहा जाता है।
1980 मे माइक्रोसाॅफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने IBM Computer बनाया और अपने अपने आपरेटिंग सिस्टम माइक्रोसाॅफ्ट मे सबसे पहले इंटरनेट की सुविधा लगाई।
1983 मे DARPA के Vint Cerf और Bob Kahn ने DARPA का नाम बदलकर ARPANET रख दिया और हर एक कम्प्यूटर के लिए उसकी एक यूनिक आइडी बनायी जिसे आज हम IP Address कहते हैं। इस IP एड्रेस से हर कम्प्यूटर मे इंटरनेट को एक्सेस करना आसान हो गया।
जब वेबसाइट का इस्तेमाल बढ़ने लगा तो 1983 मे ही Paul. V. Mockapetris ने डोमेन नेम सिस्टम का आविष्कार किया जैसे .com, .net, .edu, .org, .gov, इसके बाद से वेबसाइट नाम से बनने लगी।
इसके पहले तक किसी वेबसाइट पर जाने के लिए IP Address का यूज किया जाता था।
1989 मे विंटन सर्फ और राॅबर्ट कोन ने पहली ISP (Internet Service Provider) कंपनी बनायी तथा इसका नाम TELNET रखा। यह दुनिया की पहली इंटरनेट प्रोवाइड करने वाली कंपनी थी।
इसकी मदद से इंटरनेट का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाने लगा और इसे लोगों के इस्तेमाल के लिए दिया जाने लगा। पहले इसका इस्तेमाल केवल सरकारी और डिफेंस सेक्टर मे ही यूज होता था।
1990 मे टिम बर्नस ली ने कम्प्यूटर के लिए Html (Hyper Text Markup Language) बनाया। इसका इस्तेमाल करके पेज बनया जाने लगा जिसे वेब पेज कहा जाने लगा।
1991 मे टिम बर्नस ली ने ही WWW (World Wide Web) का निर्माण किया जिसकी मदद से वेबसाइटों को खोजना आसान हो गया। इससे पहले वेबसाइट को खोजने के लिए वह जिस भी कम्प्यूटर मे होता था उसका IP Address याद होना जरूरी था।
1992 मे इंटरनेट को एक्सेस करने के लिए मार्केट मे कुछ सर्च इंजन आए जैसे Yahoo, Bing. लेकिन कोई भी सही तरीके चल नही पाया।
इसके बाद सन् 1998 मे Google search engine आया। इसने Internet की दूनिया को बदल दिया और अब तो सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब ने लोगो के बीच दूरी को ही कम कर दिया है।
दोस्तो आज के आर्टिकल मे हमने विस्तार से जाना कि इंटरनेट क्या है (What is internet in hindi), कैसे शुरूआत हुई, किसने और कैसे बनाया गया तधा इंटरनेट कैसे काम करता है।
यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी तो हमे जरूर बताए और हां अगर आपके पास कोई प्रश्न और सुझाव हो तो जरूर बताये, धन्यवाद…